चीन में शिक्षा की नीति

अपनी साइकिल में हवा भरवाने के लिए शंघाई विवि के सिविल इंजीनियरिंग में एमएससी का एक छात्र कैंपस की दुकान में आया। साइकिल मिस्त्री ने ट्यूब चेक करके बताया कि कई पंक्चर हैं। फिर उसने कहा कि नया ट्यूब लगवा लो. छात्र ने कीमत पूछी, तो मिस्त्री ने एक की कीमत 29 आरएमबी (लगभग 290 रुपया) और दूसरे की 35 आरएमबी (350 रुपया) बताया। छात्र ने थोड़ी देर सोचा, फिर बोला, पंक्चर ही लगा दो। पंक्चर 70 रुपया का था। चाहे जेएनयू हो, शंघाई विवि हो या फिर अमेरिका का जॉन हॉपकिंस हो, एक छात्र की समस्या एक है- छात्र पैसा कहां से लाये। कर्ज लेकर पढ़ना तो बाजार का व्यापार है, राष्ट्र का निर्माण नहीं।


वह छात्र चीन के हनान प्रांत से था। वहीं जहां से ह्वेनत्सांग भारत आया और नालंदा विवि में शिक्षा हासिल की। हनान और बिहार की हालत एक जैसी है। जनसंख्या ज्यादा और कोई ढंग का उच्च शिक्षा संस्थान नहीं। न उद्योग हैं, न खेती लायक ज्यादा जमीन। शिक्षा और नौकरी के लिए वहां से लोग दूसरे प्रांत में पलायन कर जाते हैं।


चीन में प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मुफ्त और उच्च कोटि की हैं। वहां माध्यमिक शिक्षकों का वेतन भी विवि से कम नहीं हैं, कहीं-कहीं तो ज्यादा है। सरकारी मुलाजिमों, नेताओं के बच्चे भी सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। ऐसा नहीं हैं कि ग्रामीण और शहरी वातावरण में अंतर नहीं है। लेकिन, चीन की सरकार इस बात की कोशिश कर रही है कि ग्रामीण छात्रों को भी शहरी छात्रों के समकक्ष लाया जा सके। 


अधिकतर माध्यमिक विद्यालय आवासीय हैं। शंघाई में मेरे घर के पास एक माध्यमिक विद्यालय है। यहां पांच-सात हजार छात्र-छात्राएं पढ़ते होंगे। जब मैं नया आया था, तो पता ही नहीं चला कि कोई विद्यालय भी यहां है. सुबह या शाम में विद्यार्थियों का कोई हुजूम नहीं दिखता था। शुक्रवार की शाम कुछ बच्चे घर जाते हैं, फिर रविवार की शाम तक वापस। 


कमोबेश यही हर स्कूल में होता है। यह विकास का एक प्रतिफल है। शहरों में मां-बाप के पास समय नहीं, तो बच्चे हॉस्टल में. लेकिन, यह व्यवस्था ग्रामीण पृष्ठभूमि से आये बच्चों के लिए वरदान है। हैं तो ये सरकारी विद्यालय, लेकिन पढ़ाई किसी निजी विद्यालय से कम नहीं है। दिल्ली सरकार भी कोशिश कर रही है कि सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा मुहैया करायी जाये। बिना किसी भेदभाव और ऊंच-नीच के सब बच्चों के लिए शिक्षा जरूरी है।


शिक्षा के क्षेत्र में भारत जैसा बाजारीकरण कहीं नहीं हैं। चीन में स्नातक की शिक्षा मुफ्त नहीं है, लेकिन सबको एक प्रवेश राष्ट्रीय परीक्षा (काओ खाओ) पास करनी होती है। चीनी विद्यार्थियों के लिए दु:स्वप्न है यह परीक्षा। वैसे ही जैसे भारत में मेडिकल या इंजीनियरिंग के लिए नीट, एम्स या आईआईटी, जेईई और राज्य स्तरीय कई परीक्षाएं हैं।